बज़्म-ए-अहबाब भी मेरे लिए तन्हाई है मैं ने इख़्लास की क्या ख़ूब सज़ा पाई है जाने क्यों पहली मुलाक़ात में एहसास हुआ आज-कल की नहीं बरसों की शनासाई है शुक्र है तेरा सबा तू ने ये एहसास किया ख़ुशबू-ए-ज़ुल्फ़-ए-सनम ले के इधर आई है दूर हो जाएगी तारीकी शब-ए-हिज्राँ की आ मिरे चाँद कि सूनी मिरी अँगनाई है दिल खिंचा जाता है अब कूचा-ए-क़ातिल की तरफ़ देखिए आज क़ज़ा ले के कहाँ आई है अब करो बंद भी आँखों के दरीचे 'मोनिस' महफ़िलें ख़त्म हुईं आलम-ए-तन्हाई है