आप क्यूँ बैठे हैं ग़ुस्से में मिरी जान भरे ये तो फ़रमाइए क्या ज़ुल्फ़ ने कुछ कान भरे जान से जाए अगर आप को चाहे कोई दम निकल जाए जो दम आप का इंसान भरे लिए फिरते हैं हम अपने जिगर-ओ-दिल दोनों एक में दर्द भरे एक में अरमान भरे दामन-ए-दश्त ने आँसू भी न पूछे अफ़्सोस मैं ने रो रो के लहू सैकड़ों मैदान भरे तेग़-ए-क़ातिल को गले से जो लगाया 'मुज़्तर' खिंच के बोली कि बड़े आए तुम अरमान भरे