आप के हुस्न-ए-मुजस्सम का असर देखेंगे या'नी बरसात में जलता हुआ घर देखेंगे टूट कर अपने बिखरने का अमल क्या होगा बे-नक़ाब आप को बस एक नज़र देखेंगे अपने रुख़्सार पे ढलके हुए आँसू मत पोंछ आरिज़-ए-गुल पे ज़रा बर्क़-ओ-शरर देखेंगे वो अगर ग़ैर के पहलू में चला जाएगा हम भी फिर चाक-ए-गरेबाँ का असर देखेंगे आस के दीप बुझे जाते हैं अब तो आ जा और कब तक ये तिरी राहगुज़र देखेंगे बर्फ़ सूरज की हथेली पे सजा कर 'ज़ाहिद' ज़िंदगानी की हक़ीक़त का असर देखेंगे