हमारे हाथ में पत्थर तुम्हारे ख़ंजर है तुम्ही बताओ कि ताक़त कहाँ बराबर है ये बात वक़्त से पहले ही सोच लेना थी ये शोहरतों का महल पानियों के ऊपर है सवाल उस ने जो शाइस्तगी के साथ किया मिरा जवाब भी संजीदगी का मज़हर है तवे पे जल उठी रोटी तो माँ ने टोक दिया तिरा ख़याल तो रुस्वाइयों का मज़हर है बग़ावतों पे जो आमादा हम नहीं होते इसी लिए तो ये ज़ुल्म-ओ-सितम मुक़द्दर है हथेलियों में किसी की बरसती बूँदें हैं हमारे सामने छत पर अजीब मंज़र है