आप के पहलू में दुश्मन सो चुका जाइए होना था जो कुछ हो चुका हँसती है तक़दीर हँस ले उन के साथ दिल मुझे मैं अपने दिल को रो चुका हाथ रक्खा मैं ने सोते में कहाँ बोले वो झुँझला के अब मैं सो चुका हश्र में आना था पहले से हमें हम कब आए जब तमाशा हो चुका ख़ार उस दिल ने मुझे क्या क्या दिए मेरे हक़ में ये भी काँटे हो चुका अब जो घटता है घटे तूफ़ान-ए-अश्क अपनी क़िस्मत का लिखा मैं धो चुका बिक गया अम्मामा हो कर रहन-ए-मय बोझ उतरा सर से झगड़ा तो चुका तौबा की इस्याँ से अब पूछेगा कौन जम्अ' की थी जितनी दौलत खो चुका आफ़्ताब-ए-हश्र कब चमका 'रियाज़' दाग़-ए-मय दामन से जब मैं धो चुका