चाँद भी निकला सितारे भी बराबर निकले मुझ से अच्छे तो शब-ए-ग़म के मुक़द्दर निकले शाम होते ही बरसने लगे काले बादल सुब्ह-दम लोग दरीचों में खुले सर निकले कल ही जिन को तिरी पलकों पे कहीं देखा था रात उसी तरह के तारे मिरी छत पर निकले धूप सावन की बहुत तेज़ है दिल डूबता है उस से कह दो कि अभी घर से न बाहर निकले प्यार की शाख़ तो जल्दी ही समर ले आई दर्द के फूल बड़ी देर में जा कर निकले दिल-ए-हंगामा-तलब ये भी ख़बर है तुझ को मुद्दतें हो गईं इक शख़्स को बाहर निकले