आप की मुझ पर इनायत हो गई दूर सब अपनी शिकायत हो गई वो जिधर भी हो गए महव-ए-ख़िराम वो जगह गुलज़ार-ए-जन्नत हो गई ज़िक्र-ए-मय पर मुस्कुराए शैख़ जी लीजिए मालूम निय्यत हो गई आप के जो जी में आया कह गए हम जो कुछ बोले शिकायत हो गई लो कुछ इस अंदाज़ से अंगड़ाइयाँ लोग ये समझें क़यामत हो गई