हाल दिल का बयाँ न हो जाए बे-ज़बानी ज़बाँ न हो जाए ज़िंदगी का ये मुख़्तसर लम्हा सर्फ़-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ न हो जाए मुझ से छुप-छुप के आप का मिलना इश्क़ की दास्ताँ न हो जाए आप की इल्तिफ़ात-ए-बेहद से दिल कहीं बद-गुमाँ न हो जाए दिल में समझा है मेहरबाँ जिस को वही ना-मेहरबाँ न हो जाए डर है 'शाकिर' कि आशियाँ अपना नज़र-ए-बर्क़-ए-तपाँ न हो जाए