आप की तन्क़ीस पर तीखे हुए वर्ना हम भी थे कभी सुलझे हुए तुम भी हो मेरी तरह बिखरे हुए कह रहे हैं आइने टूटे हुए जिन के साया में हो तुम बैठे हुए वो शजर वो पेड़ हैं सूखे हुए रुक चुकी है साँस अब काहे की आस ज़िंदगी के ख़त्म सब क़िस्से हुए हो गया सूरज ग़ुरूब और आई रात रास्ते सब गाँव के सूने हुए