आप को अपना बनाते हुए डर लगता है दिल की दुनिया भी बसाते हुए डर लगता है लग न जाए कहीं इन फूलों को दुनिया की नज़र दाग़-ए-दिल अपने दिखाते हुए डर लगता है हो न जाए कहीं हंगामा-ए-मशहर बरपा अपनी रूदाद सुनाते हुए डर लगता है तपिश-ए-हुस्न न परवाना बना दे मुझ को उस के नज़दीक भी जाते हुए डर लगता है ग़र्क़ हो जाए न दुनिया-ए-तसव्वुर अपनी अश्क-ए-ग़म आँख में लाते हुए डर लगता है शग़्ल था दश्त-नवर्दी का कभी ऐ 'ताबाँ' अब गुलिस्ताँ में भी जाते हुए डर लगता है