आप क्या एक सितमगार बने बैठे हैं ग़ैर भी तो मिरे ग़म-ख़्वार बने बैठे हैं वाइज़ों की भी ये तौक़ीर है अल्लाह अल्लाह पासबान-ए-दर-ए-ख़ुम्मार बने बैठे हैं चश्म है आब-ए-रवाँ सीने में दाग़ों की बहार हम भी इक तख़्ता-ए-गुलज़ार बने बैठे हैं पूछते हैं वो मुझी से ये ग़ज़ब तो देखो आप भी तालिब-ए-दीदार बने बैठे हैं दिलरुबाई के ये अंदाज़ ग़ज़ब हैं तेरे कि हवस-पेशा ख़रीदार बने बैठे हैं