आप ना-आश्ना हो गए या'नी हम से ख़फ़ा हो गए ज़िंदगी मरहला बन गई हादसे सिलसिला हो गए अब शिकायत नहीं है कोई शिकवे सब बरमला हो गए आदमी आदमी के लिए तौबा तौबा ख़ुदा हो गए दर्द हद से कुछ इतने बढ़े आप अपनी दवा हो गए इत्तीफ़ाक़न वो मानूस हुए एहतियातन ख़फ़ा हो गए ज़िंदगी कश्मकश ही रही दर्द जिस का सिला हो गए कितना तन्हा है ये आदमी अपने साए जुदा हो गए हम तिरे वास्ते ज़िंदगी ज़ब्त की इंतिहा हो गए तेरा दर और मेरी जबीं कैसे लम्हे अता हो गए अशरफ़ इस ज़िंदगी के लिए क्या थे तुम और क्या हो गए