आप नूर-अफ़शाँ हैं रात के अँधेरे में या सितारे रक़्साँ हैं रात के अँधेरे में एक दिन वो ज़र्रों को आफ़्ताब कर लेंगे धूप के जो ख़्वाहाँ हैं रात के अँधेरे में क्यूँ नहीं जला लेते आँसुओं की क़िंदीलें लोग क्यूँ हिरासाँ हैं रात के अँधेरे में ख़ौफ़नाक आवाज़ें वहशियों के हंगामे रौनक़-ए-बयाबाँ हैं रात के अँधेरे में रौशनी तो पहुँची है सिर्फ़ चंद लोगों तक अब भी कितने इंसाँ हैं रात के अँधेरे में दिन की रौशनी में जो सब से बे-तकल्लुफ़ है हम से क्यूँ गुरेज़ाँ हैं रात के अँधेरे में तीरगी से लड़ने का हौसला नहीं जिन में अन के जिस्म लर्ज़ां हैं रात के अँधेरे में उजले उजले चेहरों पर अक्स दिलरुबाई के किस क़दर नुमायाँ हैं रात के अँधेरे में ढूँडते हैं सब अपने अपने हम-नवाओं को आइने परेशाँ हैं रात के अँधेरे में किस के नक़्श-हा-ए-पा रहनुमा हुए 'आदिल' रास्ते दरख़्शाँ हैं रात के अँधेरे में