आप से और क्या नहीं होगा सिर्फ़ वा'दा वफ़ा नहीं होगा किस को ख़ौफ़-ए-ख़ुदा नहीं होगा बस बुतों को ज़रा नहीं होगा आज वा'दा वफ़ा नहीं होगा तेरा दीदार क्या नहीं होगा जितनी चाहो जफ़ाएँ तुम कर लो कभी मुझ से गिला नहीं होगा लाख सूरत से कर जफ़ा मुझ पर तर्क-ए-सब्र-ओ-रज़ा नहीं होगा ले ले मेरी ज़बाँ भी ऐ क़ासिद ख़त से मतलब अदा नहीं होगा तुझ सा ज़ालिम अगर नहीं कोई मुझ सा भी बा-वफ़ा नहीं होगा क्यों बिगड़ते हो ख़त मिरा पढ़ कर अब रक़म मुद्दआ' नहीं होगा दिल तो क्या मेरी जान भी ले लो उज़्र मुझ को ज़रा नहीं होगा तेज़ होगी तो कब छुरी तेरी जब हमारा गला नहीं होगा जो सज़ा चाहते हो दो मुझ को कभी उज़्र-ए-ख़ता नहीं होगा लाख वासिल ख़ुदा से हो जाए फिर भी बंदा ख़ुदा नहीं होगा कोई शाकी जफ़ा का होगा और 'हामिद'-ए-बा-वफ़ा नहीं होगा