आप से शिकवा-ए-बेदाद करूँ या न करूँ शौक़-ए-पाबंद को आज़ाद करूँ या न करूँ आप हैं वक़्त है फ़ुर्सत है ज़रा ये कह दो अब बयाँ इश्क़ की रूदाद करूँ या न करूँ ऐ ग़म-ए-हिज्र बता ऐ दिल-ए-मायूस बता मातम-ए-हसरत-ए-नाशाद करूँ या न करूँ यूँ तो अब कुछ भी नहीं दीदा-ए-वीराँ को मगर चंद ख़्वाबों से भी आबाद करूँ या न करूँ मेरी क़िस्मत में सही दर्द-ओ-अलम की राहें शादमानी को कहीं याद करूँ या न करूँ आज मौसम ने कोई मस्त ग़ज़ल छेड़ी है ज़ब्त को माइल-ए-फ़रियाद करूँ या न करूँ ज़िंदगी इश्क़ में मिटना है तो फिर ऐसे में नाज़ तुझ पे दिल-ए-बर्बाद करूँ या न करूँ इन्क़िलाबात में तूफ़ान-ए-सितम में अज़्मत शान-ए-अल्ताफ़-ओ-करम याद करूँ या न करूँ