पुराने इश्क़ का सदमा उठाया जा रहा है किसी ज़िद में तिरा नख़रा उठाया जा रहा है जुदाई में चढ़ाई जा रही है सर मोहब्बत ग़रीबी में तिरा ख़र्चा उठाया जा रहा है तुम्हें आता नहीं शायद तमाशा देखना भी उधर देखो जिधर पर्दा उठाया जा रहा है कराई जा रही है दोस्ती हम से हमारी हमारा फ़ाएदा कितना उठाया जा रहा है निकल आया है कोई साँप यादों से तुम्हारी यूँही सर पर नहीं कमरा उठाया जा रहा है