आप सुल्तान हुआ कीजे गदा हम भी नहीं इस क़दर तो गए-गुज़रे ब-ख़ुदा हम भी नहीं अब अना को करे सज्दा तो मोहब्बत ही करे जब्हा-सा आप नहीं नासिया-सा हम भी नहीं जाइए जाइए मत देखिए मुड़ कर पीछे ऐसे शौक़ीन-ए-जफ़ा ख़ार-ए-वफ़ा हम भी नहीं चारा-ए-सरकशी-ए-दिल करें अल्लाह अल्लाह वो ख़ुदा बंदा-नवाज़ आप तो क्या हम भी नहीं दोस्ती दुश्मनी अब आप निभाएँ तो निभाएँ हम को रब्त आप से ऐसा कोई बाहम भी नहीं मेहरबान आप भी हैं और भी होंगे लेकिन चाहते तो दिल-ए-नादाँ का बुरा हम भी नहीं लाख लैलाएँ उमड आएँ ग़ज़ल पर 'राहील' आख़िर इस दश्त की आवारा सदा हम भी नहीं