ख़्वाबों की दस्तरस में न आँखों की हद में है इम्कान-ए-वस्ल गर्द-ए-मसाफ़त की ज़द में है लिक्खा हुआ था हिज्र हमारे नसीब में ये इस्तिनाद तेरी तमन्ना के रद में है दश्त-ए-ग़म-ए-फ़िराक़ में भटके हुए हैं हम सद-शुक्र तेरी याद हमारी रसद में है अहल-ए-जुनूँ हैं रज़्म-गह-ए-हक़ में जाँ-ब-कफ़ तल्क़ीन-ए-दस्त-बस्तगी बज़्म-ए-ख़िरद में है मैं क्या हूँ मैं तो ख़ाक हूँ और मेरी ज़िंदगी इक अम्र-ए-कुन-फ़काँ है जो ख़ाकी जसद में है