आप तो बात का अख़बार बना देते हैं घर का माहौल पुर-असरार बना देते हैं बाज़ आँखों को तकल्लुम भी अता होता है अपनी ख़ामोशी को इज़हार बना देते हैं अब शिकायत न करो आप ने जो दर्द दिए हम को पीने का रवादार बना देते हैं हुस्न-ए-मुत्लक़ तुझे मालूम कहाँ लज़्ज़त-ए-दीद आ तुझे तालिब-ए-दीदार बना देते हैं आप की जुम्बिश-ए-अबरू ये इशारे ये किनाए बात को और मज़ेदार बना देते हैं ऐसे अहकाम भी तकवीन की साआ'त में हैं जो फ़रिश्तों को ख़ता-कार बना देते हैं हम भी आज़र हैं अगर आप हैं पत्थर की चटान आईये आप को शहकार बना देते हैं मैं कहाँ तुम से मिला रात कहाँ चाँदनी थी यूँही बस बात मिरे यार बना देते हैं देख कर लौह-ए-लहद दिल में ख़याल आता है सर बनाते नहीं दस्तार बना देते हैं हम ने देखा है करिश्मा ये तिरे आहन-गर पल में ज़ंजीर को तलवार बना देते हैं