आप यकता हुए मज़ा न हुआ लुत्फ़ ही क्या जो दूसरा न हुआ जाने क्या होता हश्र-ए-ज़ौक़-ए-नज़र ख़ैर गुज़री कि सामना न हुआ वो शनावर हूँ बहर-ए-हस्ती में जो कभी साहिल-आश्ना न हुआ हौसला रह गया वफ़ा का मुझे वो कभी माइल-ए-जफ़ा न हुआ क्यूँ चमकती है बर्क़ नज़्द-ए-क़फ़स ये भी क्या मेरा आशियाना हुआ लुत्फ़ उठाता किसी के जल्वों का दिल मिरा हाए आइना न हुआ शिकवा बेदाद का तो क्या 'मैकश' लब से नाला भी आश्ना न हुआ