शम्अ' सर धुनती रही महफ़िल में परवानों के साथ आप याद आते रहे कुछ तल्ख़ उनवानों के साथ शाम-ए-ग़म शाम-ए-जुदाई दर्द-ए-दिल दर्द-ए-जिगर सारे क़िस्से ख़त्म हो जाएँगे दीवानों के साथ शीशा-ओ-पैमाना ही ज़ेबाइश-ए-मय-ख़ाना हैं छेड़ शीशे की नहीं अच्छी है पैमानों के साथ कैसा वो दिलचस्प मंज़र होगा ऐ जान-ए-अज़ीज़ वो हों साहिल पे खड़े और हम हों तूफ़ानों के साथ हम न होंगे पर हमारी दास्ताँ रह जाएगी याद हम आया करेंगे अपने अफ़्सानों के साथ बादा-ए-इरफ़ाँ का साग़र ले के 'आरिफ़' हाथ में सू-ए-मय-ख़ाना चला है आज फ़र्ज़ानों के साथ