आरज़ू महव-ए-ख़्वाब है शायद जुस्तुजू का जवाब है शायद ज़ख़्म-ए-दिल की बहार क्या कहिए मुस्कुराता गुलाब है शायद इक नई तिश्नगी ब-हर लम्हा सारी दुनिया सराब है शायद अहद-ए-माज़ी पे जब नज़र डाली इक अधूरी किताब है शायद कोई जीता है कोई मरता है ज़िंदगानी हबाब है शायद 'रौशनी' इस ग़ज़ल की सरमस्ती उस ग़ज़ल की शराब है शायद