मौत इक गीत रात गाती थी ज़िंदगी झूम झूम जाती थी कभी दीवाने रो भी पड़ते थे कभी तेरी भी याद आती थी ज़िक्र था रंग-ओ-बू का और दिल में तेरी तस्वीर उतरती जाती थी थे न अफ़्लाक गोश-बर-आवाज़ बे-ख़ुदी दास्ताँ सुनाती थी जल्वा-गर हो रहा था कोई उधर धूप इधर फीकी पड़ती जाती थी हमा-तन-गोश ज़िंदगी थी 'फ़िराक़' मौत धीमे सुरों में गाती थी