आरज़ी होते हैं जज़्बे सारे दूर मुझ से रहें अच्छे सारे नाम भाषा है अलग धर्म अलग होते हैं एक से बंदे सारे दोस्ती प्यार वफ़ा और ख़ुलूस मुझे लगते हैं ये फंदे सारे आँख खुलते हैं अचानक ग़ाएब नींद में रह गए सपने सारे एक भी शख़्स नहीं है अपना शहर में लोग हैं कितने सारे अपने जिस्मों में दुबक जाते हैं घर पहुँचते ही तमाशे सारे