आरज़ू बंद निगाहों का सफ़र है शायद दूर आफ़ाक़ से आराम-नगर है शायद कितने मासूम बदन झूल गए सूली पर अब के सरसब्ज़ दरख़्तों में भँवर है शायद शाम आती है तो चिड़ियों की चहक सुनता हूँ मेरे अंदर कोई नादीदा शजर है शायद लोग सब दौड़ रहे हैं अभी ऊपर की तरफ़ आसमानों में छुपा नूर-ए-नज़र है शायद