आस ही से दिल में पैदा ज़िंदगी होने लगी शम्अ जलने भी न पाई रौशनी होने लगी इंतिहा-ए-इश्क़ है कैसी जफ़ा कैसा गिला अब तो उन की हर ख़ुशी अपनी ख़ुशी होने लगी रोक अपना हाथ रोक अब ऐ जुनून-ए-जामा-दर हुस्न-ए-पर्दा-दार की पर्दा-दरी होने लगी उलझी उलझी साँस घबराई नज़र बहके क़दम ऐ निगार-ए-मस्त दुनिया दूसरी होने लगी चाँद मेरा कहकशाँ मेरी गुल-ओ-ग़ुंचा मिरे तुम मिरे होने लगे दुनिया मिरी होने लगी डूबे तारे झिलमिलाई शम्अ शबनम रो पड़ी इंतिज़ार-ए-सुब्ह था लो सुब्ह भी होने लगी सोज़-ए-दिल से रौशनी होने लगी दिल में 'नज़ीर' इश्क़ की दुनिया भी दुनिया हुस्न की होने लगी