ऐ दिल बता ये उन की नवाज़िश है या नहीं वो दर्द मिल गया है कि जिस की दवा नहीं ख़ुश-फ़हमियों को दिल ने फ़रामोश कर दिया ये और बात है कि तुम्हें भूलना नहीं माऊफ़ कर दिया है ग़मों ने दिल-ओ-दिमाग़ अब तो हमें ख़याल किसी बात का नहीं ज़ब्त-ए-अलम पे हर्फ़ न आने दिया कभी आँखों से एक अश्क भी अब तक गिरा नहीं मौजों को क्या ख़बर है जो हैं सत्ह-ए-आब पर दरिया में जो छुपा है वो तूफ़ाँ उठा नहीं नैरंगी-ए-जहाँ का कहाँ तक मुशाहिदा ऐ फ़ुर्सत-ए-निगाह तिरा जी भरा नहीं ये ज़ीस्त का सफ़र भी 'मुनव्वर' अजीब है मंज़िल है कितनी दूर हमें कुछ पता नहीं