आस शमएँ जलाती रही रात भर तीरगी मुँह चिढ़ाती रही रात भर याद उन की दिलाती रही रात भर रात मुझ को सताती रही रात भर उन की ख़ुशबू से आँगन महकता रहा चाँदनी मुस्कुराती रही रात भर आप की राह में रौशनी के लिए आरज़ू जगमगाती रही रात भर गुल के लब पर हँसी देखने के लिए शबनम आँसू बहाती रही रात भर इक सनोबर तले ठंडी ठंडी हवा इक कहानी सुनाती रही रात भर चश्म-ए-साक़ी में 'राही' वो क्या बात थी आँख से नींद उड़ाती रही रात भर