ऐ सितम-गर सितम की बात नहीं कम से कम आज ग़म की बात नहीं सुब्ह-ए-नौ का है ज़िक्र महफ़िल में अब यहाँ शाम-ए-ग़म की बात नहीं सारी दुनिया है मेहरबान तो क्या उन के लुत्फ़-ओ-करम की बात नहीं तज़्किरा है वफ़ा की मंज़िल का राह के पेच-ओ-ख़म की बात नहीं मुनहसिर है अमल तो निय्यत पर सिर्फ़ क़ौल-ओ-क़सम की बात नहीं ज़िक्र शीशा-गरों का है 'राही' पत्थरों के सनम की बात नहीं