आसान हर इक बात को दुश्वार करो तुम इक़रार जहाँ मैं करूँ इंकार करो तुम जब बीच भँवर ज़ीस्त की कश्ती कभी डूबे मल्लाह बनो और मुझे पतवार करो तुम दामन पे मोहब्बत का कोई दाग़ लगा कर फिर पेश-ए-ज़माना मुझे लाचार करो तुम ज़ंजीर-ए-मोहब्बत यूँही पैरों में सजा कर वहशत का तमाशा मिरी हर बार करो तुम हर बात पे ठहरा के मुझे मोरिद-ए-इल्ज़ाम ईसार-ओ-वफ़ा को मिरे बे-कार करो तुम ये ज़ोम-ए-ख़ुदी है कि तमाशा-ए-ख़ुदी है सर बेच के नामूस को दस्तार करो तुम