कहाँ गिरफ़्त में अब माह-ओ-साल के मौसम बिखरते जाते हैं तेरे विसाल के मौसम तिरे जवाब के वक़्फ़े तवील कितने हैं गुज़रते जाते हैं मेरे सवाल के मौसम हर एक फूल कली को बुला रहा है क़रीब चमन में आए हैं अब के कमाल के मौसम मैं डूबती हूँ किनारों पे और कहती हूँ कभी न देखे थे ऐसे ज़वाल के मौसम तू अपनी आँख में ताब-ए-बहार ला तो सही जहान भर में हैं हुस्न-ओ-जमाल के मौसम कि जैसे ज़ेहन में अहद-ए-ख़िज़ाँ उतर आया बहुत ही ज़र्द हुए हैं ख़याल के मौसम