आसाँ नहीं है सैल-ए-जवानी को रोकना मुमकिन कहाँ ढलान पे पानी को रोकना निकलेगी उँगलियों की दरारों से रौशनी मुश्किल है मुट्ठियों में निशानी को रोकना काग़ज़ पे बहने वाली नदी पर वक़ार है आसाँ नहीं है उस की रवानी को रोकना नाख़ून लिखते रहते हैं चेहरों पे रोज़-ओ-शब कब तक लिखेगा ऐसी कहानी को रोकना बस में कहाँ किसी के भी बेवा की आँख से इक एक क़तरा बहती कहानी को रोकना