आशिक़ का जहाँ में घर न देखा ऐसा कोई दर-ब-दर न देखा जैसा कि उड़े है ताइर-ए-दिल ऐसा कोई तेज़-पर न देखा ख़ूबान-ए-जहाँ हों जिस से तस्ख़ीर ऐसा कोई हम हुनर न देखा टूटे दिल को बना दिखावे ऐसा कोई कारी-गर न देखा उस तेग़-ए-निगह से हो मुक़ाबिल ऐसा कोई बे-जिगर न देखा जारी हैं हमेशा चश्मा-ए-चशम ऐसा कोई अब्र-ए-तर न देखा जो आब है आबरू में 'हातिम' ऐसा कोई हम गुहर न देखा