पोछिए मत क्या हुआ कैसे हुआ बुत कोई मेरा ख़ुदा कैसे हुआ आदमी बेहद बुरा था वो मगर फिर अचानक वो भला कैसे हुआ जिस दिए की आबरू थी रौशनी वो तरफ़-दार-ए-हवा कैसे हुआ मैं जिसे समझी न थी वो इश्क़ था हाँ मगर फिर वो सज़ा कैसे हुआ आदमी से पूछता है आदमी आदमी ख़ुद से जुदा कैसे हुआ मुझ को आया था मनाने के लिए क्या ख़बर मुझ से ख़फ़ा कैसे हुआ सोचती रहती हूँ मैं अक्सर 'सबीन' जो नहीं सोचा गया कैसे हुआ