आशिक़ कहें हैं जिन को वो बे-नंग लोग हैं माशूक़ जिन का नाम है वो संग लोग हैं किस तरह कसबियों से रखे कोई जी बचा सब जानते हैं इन को ये सरहंग लोग हैं मजनूँ तू जा के दश्त में फ़रियाद कर कि आए नाले से तेरे शहर के दिल-तंग लोग हैं आलम के सूफ़ियों के कोई क्या समझ से हर रंग से जुदा हैं ये बे-रंग लोग हैं हम तो न लाल-ए-लब का तिरे बोसा ले सके रखते हैं ये ख़याल जो बे-ढंग लोग हैं उतरा है कौन आब में ये जिस के हुस्न से हैराँ खड़े हुए ब-लब-ए-गंग लोग हैं मेरे लुग़ात-ए-शेर के आलम को 'मुसहफ़ी' समझें हैं वो जो साहिब-ए-फ़रहंग लोग हैं