हम जो मस्त-ए-शराब होते हैं ज़र्रे से आफ़्ताब होते हैं है ख़राबात सोहबत-ए-वाइज़ लोग नाहक़ ख़राब होते हैं क्या कहें कैसे रोज़ ओ शब हम से अमल-ए-ना-सवाब होते हैं बादशह हैं गदा, गदा सुल्तान कुछ नए इंक़लाब होते हैं हम जो करते हैं मय-कदे में दुआ अहल-ए-मस्जिद को ख़्वाब होते हैं वही रह जाते हैं ज़बानों पर शेर जो इंतिख़ाब होते हैं कहते हैं मस्त रिंद-ए-सौदाई ख़ूब हम को ख़िताब होते हैं आँसुओं से 'अमीर' हैं रुस्वा ऐसे लड़के अज़ाब होते हैं