आशिक़ समझ रहे हैं मुझे दिल लगी से आप वाक़िफ़ नहीं अभी मिरे दिल की लगी से आप दिल भी कभी मिला के मिले हैं किसी से आप मिलने को रोज़ मिलते हैं यूँ तो सभी से आप सब को जवाब देगी नज़र हस्ब-ए-मुद्दआ सुन लीजे सब की बात न कीजे किसी से आप मरना मिरा इलाज तो बे-शक है सोच लूँ ये दोस्ती से कहते हैं या दुश्मनी से आप होगा जुदा ये हाथ न गर्दन से वस्ल में डरता हूँ उड़ न जाएँ कहीं नाज़ुकी से आप ज़ाहिद ख़ुदा गवाह है होते फ़लक पर आज लेते ख़ुदा का नाम अगर आशिक़ी से आप अब घूरने से फ़ाएदा बज़्म-ए-रक़ीब में दिल पर छुरी तो फेर चुके बे-रुख़ी से आप दुश्मन का ज़िक्र क्या है जवाब उस का दीजिए रस्ते में कल मिले थे किसी आदमी से आप शोहरत है मुझ से हुस्न की इस का मुझे है रश्क होते हैं मुस्तफ़ीज़ मिरी ज़िंदगी से आप दिल तो नहीं किसी का तुझे तोड़ते हैं हम पहले चमन में पूछ लें इतना कली से आप मैं बेवफ़ा हूँ ग़ैर निहायत वफ़ा शिआर मेरा सलाम लीजे मिलें अब उसी से आप आधी तो इंतिज़ार ही में शब गुज़र गई उस पर ये तुर्रा सो भी रहेंगे अभी से आप बदला ये रूप आप ने क्या बज़्म-ए-ग़ैर में अब तक मिरी निगाह में हैं अजनबी से आप पर्दे में दोस्ती के सितम किस क़दर हुए मैं क्या बताऊँ पूछिए ये अपने जी से आप ऐ शैख़ आदमी के भी दर्जे हैं मुख़्तलिफ़ इंसान हैं ज़रूर मगर वाजिबी से आप मुझ से सलाह ली न इजाज़त तलब हुई बे-वजह रूठ बैठे हैं अपनी ख़ुशी से आप 'बेख़ुद' यही तो उम्र है ऐश ओ नशात की दिल में न अपने तौबा की ठानें अभी से आप