कितने दरिया इस नगर से बह गए दिल के सहरा ख़ुश्क फिर भी रह गए आज तक गुम-सुम खड़ी हैं शहर में जाने दीवारों से तुम क्या कह गए एक तू है बात भी सुनता नहीं एक हम हैं तेरा ग़म भी सह गए तुझ से जग-बीती की सब बातें कहीं कुछ सुख़न नाग़ुफ़्तनी भी रह गए तेरी मेरी चाहतों के नाम पर लोग कहने को बहुत कुछ कह गए