आशिक़ तो बद-नसीब है इस में कलाम क्या रक्खा है तू ने ये तो बता अपना नाम क्या माशूक़ की निगाह में उल्फ़त का काम क्या बदनाम कर रहे हो मोहब्बत का नाम क्या सौ बार आप कह चुके हम से न बोलिए ये हो गया है आप का तकिया-कलाम क्या रोज़-ए-अज़ल के मस्त को पीने से काम है उस की नज़र में हुर्मत-ए-माह-ए-सियाम क्या हूरें बलाएँ लेती हैं माशूक़ की मिरे पैदा न था बहिश्त में हुस्न-ए-तमाम क्या वो ख़ुद पिलाएँ मैं न पियूँ मेरी क्या मजाल इस में सवाल-ए-सुब्ह है क्या ज़िक्र-ए-शाम क्या नज़रों में सारे तय हों मोहब्बत के कारोबार हम तुम हैं सामने तो पयामी का काम क्या गुज़री है अपनी उम्र यूँही इंतिज़ार में आएगा 'शाद' उन का कोई अब पयाम क्या