ये आगही है जो करती है मुझ को ज़ात में गुम फिर इस के ब'अद मैं होता हूँ शश-जहात में गुम ये काएनात मिरी जान क़ुफ़्ल-ए-अबजद है मैं खोलता हूँ इसे कर के मुम्किनात में गुम ये दाएरे हैं तुम्हें फिर से क़ैद कर लेंगे फ़ना से निकले तो हो जाओगे सबात में गुम मैं कर्बला हूँ मुझे देख मेरी क़ामत देख ज़माना कर नहीं सकता मुझे फ़ुरात में गुम तिरी जुदाई का नीलम अलग से रक्खा है किया नहीं उसे दुनिया के ज़ेवरात में गुम मिरा बुढ़ापा मिरी रूह की तलाश में है मिरी जवानी बदन के लवाज़िमात में गुम मैं इल्म हूँ मुझे तस्ख़ीर करना आता है वो जहल था जो हुआ तेरी काएनात में गुम