आशिक़ों की बज़्म हो और हल्क़ा-ए-रिंदाँ भी हो मा'रिफ़त का जाम हो और बादा-ए-ईमाँ भी हो गरचे अंदाज़-ए-बयाँ तो ख़ूब है वाइज़ के पास हाँ मगर रख़्त-ए-सफ़र में बा-अमल सामाँ भी हो इस दिल-ए-बेताब पर कुछ तो करम फ़रमाइए जुस्तुजू-ए-यार हो और दर्द का दरमाँ भी हो हुस्न का परवाना बनने के लिए ये शर्त है आतिश-ए-फ़ुर्क़त में जलने का तिरा अरमाँ भी है सर-ज़मीन-ए-दिल का वाली भी तो कोई हो यहाँ दिल अगर है सल्तनत तो दिल का इक सुल्ताँ भी हो हर मक़ाम-ए-ज़ीस्त पर अक़्ल-ओ-ख़िरद अच्छी नहीं होश-मंदों के लिए 'उस्माँ’ दिल-ए-नादाँ भी हो