सोज़ में डूबी हुई दर्द की तफ़्सीर न देख जेहद-ए-पैहम के अलम-दार ये तक़दीर न देख ख़्वाब भी तू ही यहाँ ख़्वाब की ता'बीर भी तू तू ही इक्सीर-ए-सिफ़त है कोई इक्सीर न देख हिकमत-ओ-इल्म-ओ-फ़िरासत ही तिरा विर्सा है नूर-ए-ईमान-तलब ग़र्ब की तनवीर न देख कीमिया-गर है तो कुछ गुर भी तिरी गर्द में हो संग ढूँडे कि न ढूँडे तुझे ऐ 'मीर' न देख जिस को कहते हैं बक़ा उस का समझना है मुहाल सारे औराक़ पलट अब कोई तफ़्सीर न देख ज़ख़्म उल्फ़त में मिले हैं जो वो हैं इनआमात तू मिरे दर्द को इस तरह से दिल-गीर न देख जिन से चुँधिया गईं दुनिया की निगाहें अक्सर संग-रेज़े हैं ये 'उस्मान' की जागीर न देख