आशियाना मिरा बर्बाद न कर ऐ सय्याद बाग़ से तू मुझे आज़ाद न कर ऐ सय्याद क़ैद तू ने किया गुलचीं ने मिरा दिल तोड़ा उस पे कहता है कि फ़रियाद न कर ऐ सय्याद फूल कुम्हला गए नग़्मों का ज़माना न रहा पिछली बातों को तो अब याद न कर ऐ सय्याद इक न इक रोज़ तो गुलशन में बहार आएगी ख़ाक मेरी अभी बर्बाद न कर ऐ सय्याद फिर ये कहता हूँ कि मैं 'शाद' हूँ नाशाद न हूँ आशियाना मेरा बर्बाद न कर ऐ सय्याद