आश्ना फिर उस सितम-ईजाद का क्यों कर हुआ ऐ दिल-ए-नादाँ तू ग़म में मुब्तला क्यूँकर हुआ क्या अदू से चल गई कुछ बंदा-पर्वर आप की मेरे घर इस वक़्त आना आप का क्यूँकर हुआ हो गया क्या रोब-ओ-दाब-ए-हुस्न उन का ऐ ख़ुदा बात करने का अदू को हौसला क्यूँकर हुआ सख़्तियाँ सहने से हो जाता तहम्मुल आप ही फिर मिरे आगे बयाँ उज़्र-ए-जफ़ा क्यूँकर हुआ जब न पामाल-ए-ख़िराम-ए-नाज़ था ऐ फ़ित्ना-गर फिर हमारा अब के दिल यूँ सुर्मा सा क्यूँकर हुआ शोख़ियाँ उस शोख़ की क्या कर गईं तुझ में असर ऐ दिल-ए-नादाँ तू इतना चुलबुला क्यूँकर हुआ बुल-हवस की सी वफ़ादारी तो मैं ने की न थी फिर तुम्हारा मोरिद-ए-जौर-ओ-जफ़ा क्यूँकर हुआ सर मिरा मेरी जबीन इस बात की थी मुस्तहिक़ सज्दा-गाह-ए-ख़ल्क़ उस का नक़्श-ए-पा क्यूँकर हुआ 'लुत्फ' से किस लुत्फ़ से कहते हैं सारे अक़रबा कुश्ता-ए-नाज़-ए-बुताँ मर्द-ए-ख़ुदा क्यूँकर हुआ