आशुफ़्ता-नवाई से अपनी दुनिया को जगाता जाता हूँ दीवाना हूँ दीवानों को मैं होश में लाता जाता हूँ उम्मीद की शमएँ रह रह कर मैं दिल में जलाता जाता हूँ जब जल चुकती हैं ये शमएँ फिर सब को बुझाता जाता हूँ तुम देख रहे हो मयख़ाने में जुरअत-ए-रिंदाना मेरी मैं ख़ुद भी पीता जाता हूँ तुम को भी पिलाता जाता हूँ तकमील-ए-मोहब्बत करता हूँ कुछ गर्मी से कुछ नर्मी से आहें भी भरता जाता हूँ आँसू भी बहाता जाता हूँ बे-कार सही नाले मेरे बे-सूद सही आहें मेरी मैं उन की निगाहों में लेकिन फिर भी तो समाता जाता हूँ हाँ साज़-ए-शिकस्ता में मेरे नग़्मों का तलातुम पिन्हाँ है शोरीदा-नवाई से अपनी महफ़िल पर छाता जाता हूँ मैं सई-ए-मुसलसल कर के भी मंज़िल से कोसों दूर रहा मंज़िल न मिली तो क्या है मगर अपने को पाता जाता हूँ उम्मीद-ए-वफ़ा के पेश-ए-नज़र मैं उन की जफ़ाएँ भूल गया है मुस्तक़बिल पर आँख मिरी माज़ी को भुलाता जाता हूँ क़ुदरत भी मुहय्या करती है अब मेरे लिए इबरत के सबक़ हर गाम पे ठोकर खाता हूँ और होश में आता जाता हूँ 'नजमी' ये ख़मोशी भी मेरी कुछ वज्ह-ए-सुकून-ए-दिल न हुई मैं ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ से दर्द को अपने और बढ़ाता जाता हूँ