कुछ ऐसी चल रही थी हवा दिल नहीं लगा मेले में ज़िंदगी के ज़रा दिल नहीं लगा तन्हाइयों ने मुझ को नवाज़ा तमाम उम्र महफ़िल के शोर में ब-ख़ुदा दिल नहीं लगा दुनिया-ए-कारोबार में ऐ ताजिर-ए-अज़ीम सारा मताअ-ओ-माल लगा दिल नहीं लगा मैं रौनक़ों से शहर की मायूस जब हुआ अहल-ए-ख़िरद ने मुझ से कहा दिल नहीं लगा बे-ज़ारियों का पूछा जो अहबाब ने सबब मैं ने जवाब उन को दिया दिल नहीं लगा 'अमजद' तो चार दिन को ही ठहरा सराए में फिर भी वहाँ सुकूँ न मिला दिल नहीं लगा