आसमाँ से उतरता हुआ By Ghazal << मोहब्बत करने वालों की इना... बाग़बाँ पर ज़ोर चलता है न... >> आसमाँ से उतरता हुआ एक तारा बुझाया हुआ आज भी रात की रानी के तन से है नाग लिपटा हुआ एक पत्ता किसी शाख़ से टूट कर आज तन्हा हुआ काग़ज़ी तन है उस का मगर धूप में कब से झुलसा हुआ पहला अक्षर तिरे नाम का रौशनी से है लिक्खा हुआ Share on: