आसमाँ इश्क़ की अज़्मत के सिवा भी कुछ है क्या ये सहरा मिरी वहशत के सवा भी कुछ है मूँद लूँ आँख तो बे-कार है सब रंग-ए-जहाँ क्या मिरी चश्म-ए-इनायत के सिवा भी कुछ है कुछ तो है जिस के बताने से हूँ क़ासिर लेकिन अब तिरे दर्द में लज़्ज़त के सिवा भी कुछ है मेरी आँखों से कोई उस का सरापा देखे तब खुलेगा कि क़यामत के सिवा भी कुछ है हर तअल्लुक़ किसी क़ीमत का तलब-गार नहीं दिल के सौदे में तिजारत के सिवा भी कुछ है हाँ वह इक लम्हा कि हक़-गोई पे गर्दन कट जाए यानी ता-उम्र इबादत के सिवा भी कुछ है हुस्न सब हुस्न-ए-तबीअ'त पे है मौक़ूफ़ 'नदीम' या कहीं हुस्न-ए-तबीअ'त के सिवा भी कुछ है