आसमाँ पर बिठा दिया मुझ को इस सुख़न ने झुका दिया मुझ को दास्ताँ ज़िंदगी की इतनी है ज़िंदगी ने खपा दिया मुझ को छाँव में जब गया मैं सुस्ताने ख़्वाहिशों ने उठा दिया मुझ को सब्र की छत बचाते हैं कैसे आँधियों ने सिखा दिया मुझ को मैं था बे-फ़िक्र बैठ कश्ती में कश्ती ने ही डुबो दिया मुझ को फ़ोन पर तेरी इस ख़मोशी ने आज फिर से रुला दिया मुझ को किस क़दर दूरियों की चादर है करवटों ने बता दिया मुझ को ख़्वाब सी ज़िंदगी थी 'ग़ाफ़िल' की शुक्रिया जो जगा दिया मुझ को