आज मौसम बड़ा सुहाना है याद आया कोई फ़साना है अश्क माज़ी शराब और ग़ज़लें रब्त इन से मिरा पुराना है ग़ुर्बतों के ये दौर हैं अच्छे चाँद तारों पे शामियाना है ये तिरी याद है तिरे जैसी काम इन का मुझे सताना है खोल दिल की गिरह ज़रा तू भी ये तग़ाफ़ुल तो बस बहाना है दश्त को दश्त रहने दे इंसाँ बे-ज़बाँ का ये आशियाना है कारवाँ साथ था कभी मेरे आज 'ग़ाफ़िल' हुआ ज़माना है